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आप सभी के लिए पेश है गोवर्धन व्रत कथा हिंदी में (govardhan vrat katha in hindi)।

govardhan vrat katha in hindi with pdf

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गोवर्धन व्रत कथा - Govardhan Vrat Katha

कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा के दिन गोवर्धन पूजा का विधान किया गया है। इसे अन्नकूट के नाम से भी अभिहित किया जाता है । उस दिन सभी देव-मन्दिरो मे अन्नकूट की सजावट की जाती है, जिसमे देवमूर्ति के समक्ष नाना प्रकार के पकवान बनाकर नैवेद्य के रूप मे अर्पित किए जाते है। 

इस श्रृंगार को देखने के लिए मन्गिरो मे उस दिन भारी भीड़ उमड़ पड़ती है। पौराणिक मान्यता के अनुसार उस दिन ब्रजवासी नन्द बाबा के नेतृत्व में इन्द्र की पूजा किया करते थे। जिसे इन्द्रयाग कहा जाता है । एक बार भगवान् श्री कृष्ण ने नन्दबाबा को इन्द्र की पूजा करने से रोक दिया । उन्होने कहा कि, सब लोग मिलकर गोवर्धन नाथ की पूजा करे तो विशेष लाभ होगा। 

उनके कथनानुसार सभी ब्रजवासियो ने वैसा ही किया और छप्पन भोग लगाकर गोवर्धन नाथ की पूजा की। इसके फल स्वरूप इन्द्र देव कुपित हो गए और उन्होने अपने मेघो को आदेश दिया कि, तुम लोग मूसलाधार वृष्टि करके समस्त ब्रजमण्डल को बहा दिया। मेधो ने लगातार सात दिनो तक ब्रज पर घनघोर वर्षा की  इस प्रकार का दृष्य देखकर भगवान् श्रीकृण ने गोवर्धन पर्वत को अपने हाथ की कानी उँगली पर धारण कर लिया। 

उस विशालकाय पर्वत के नीचे सभी गोपो को सुरक्षित रखा। भगवान् की इस अदभुत लीला को देखकर आश्चर्यचकित हो इन्द्र घबरा उठा। इन्द्र को श्रीकृष्ण मे ईश्वरत्व का भान हुआ। उसने श्रीकृष्ण से श्रमा-याचना की और उनका दुग्धाभिषेक किया । वह अभिक दूध जिस स्थान मे बहकर एकत्रित हुआ, उसे सुरभि-कुण्ड के नाम से जाना जाता है । इस प्रकार भगवान् श्रीकृष्ण द्वारा इन्द्र का मान- मर्दन किये जाने पर अन्नकूट का त्योहार विजय-पर्व के रूप में मनाया जाता है।

गोवर्धन व्रत कथा PDF - Govardhan Vrat Katha PDF

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